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सोशल मीडिया

दोस्तों आज के समय मे शायद ही कोई होगा जोकि Social Media का इस्तेमाल नही करता होगा क्योंकि सोशल मीडिया हमारी जिंदगी से जुड़ चुका हैं,इसलिए हर कोई socially बन चुका है अगर सच पूछो तो Social Media के आने के बाद हमारी जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है।

Social Media एक वर्चुअल दुनिया है जो असल दुनिया से बिल्कुल अलग हैं यहाँ आप एक से दूसरे राज्य और एक देश से दूसरे देश के लोगों के साथ जुड़ सकते है,और उनके साथ अपने विचार का आदान प्रदान कर सकते हैं।

वैसे तो Social Media को इंसानों ने अपने मनोरंजन के लिए बनाया है लेक़िन आज यह हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका हैं इस बात का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं की आज किसी के स्मार्टफोन में Social Media जैसे फेसबुक, इन्स्टाग्राम, ट्विटर और चिनगारी ऐप, आसानी से मिल जाते है।

दोस्तों वैसे तो Social Media के अधिक इस्तेमाल करने के कईं कारण हो सकते है लेक़िन जो समान्य कारण है वह मनोरंजन और टाइम पास जिसके लिए Social Media Plateform का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता हैं इसलिए जब भी हमें ख़ाली समय मिलता है तो हम अपने स्मार्टफोन पर Social Media का इस्तेमाल करने लग जाते हैं।

इसी कारण आज लोग असल दुनिया से ज्यादा Social Media की दुनिया मे अधिक एक्टिव रहते हैं ,और साथ ही हर सोशल मीडिया पर मिल जाते है, जैसे Facebook, Twitter, Instagram, chingari, इत्यदि।

सोशल मीडिया के उपयोग

दोस्तों जैसे-जैसे टेक्नोलोजी बढ़ती जा रही है उसी के साथ साथ सोशल मीडिया का उपयोग भी बढ़ता जा रहा है। सोशल मीडिया के माध्यम से अब व्यक्ति सिर्फ अपने विचार व्यक्त नहीं करता बल्कि किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध बना सकता है। अगर पिछले वर्षों में देखा जाए तो सोशल मीडिया की वजह से ऐसे बहुत विकासात्मक कार्य हुए हैं जिनकी वजह से लोकतंत्र को और ज्यादा समृद्ध बनने में मदद मिली है और देश की एकता और अखंडता और समाजवादी गुणों में भी अभीवृद्धि हुई है। आपने सुना होगा कि दुनिया बहुत छोटी सी है लेकिन सोशल मीडिया नेटवर्क ने इस बात को सच बना दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक व्यक्ति संसार में बैठे किसी भी व्यक्ति से बात कर सकता है और अपनी सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकता है।संसार को जोड़े रखने में सोशल मीडिया एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. सोशल मीडिया एक ऐसी जगह है जहां आप पूरे संसार से जुड़ी बातें और खबरें एक साथ एक समय पर जान सकते हैं और दूसरों से इन सब घटनाओं के बारे में बात कर सकते हैं और अपने विचारों को एक दूसरे के साथ साझा कर सकते हैं या बाट सकते हैं।

दोस्तों अब तो चुनाव होने से पहले भी लोग सोशल मीडिया पर अपनी राय और अपने विचार एक दूसरे के साथ व्यक्त करते हैं और सही और गलत सूचना में फर्क भी दिखाते हैं। कई बार ऐसा होता है कि चुनाव आने से पहले लोगों के बीच में गलतफहमी डालने के लिए गलत सूचनाओं का सहारा लिया जाता है, लेकिन सोशल मीडिया की वजह से अब इस तरह की गतिविधियों पर भी रोक लग गई है। लोग अब सही और सच सूचना को जानने और आदान प्रदान करने में यकीन रखते हैं इतना ही नहीं अगर कभी कुछ गलत सूचना आती है तो उसका जमकर विरोध भी किया जाता है।

सोशल मीडिया के लाभ

.दैनिक जीवन में सोशल मीडिया बहुत तेज गति से होने वाला संचार का माध्यम है
.यह जानकारी को एक ही जगह इकट्ठा करता है।
.सरलता से समाचार प्रदान करता है,
.सभी वर्गों के लिए है, जैसे कि शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग।
.यहां किसी प्रकार से कोई भी व्यक्ति किसी भी कंटेंट का मालिक नहीं होता है।
.फोटो, वीडियो, सूचना, डॉक्यूमेंटस आदि को आसानी से शेयर किया जा सकता है।

सोशल मीडिया के हानि

.किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।
.यहां कंटेंट का कोई मालिक न होने से मूल स्रोत का अभाव होना।
.प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है।

.फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं जिनके व्दारा कभी-कभी दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती है।
.सायबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।

तो दोस्तों आखिरकार बस हम इतना ही कह सकते हैं कि हर एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार सोशल मीडिया के भी अपने प्रभाव और दुष्प्रभाव हैं। हालांकि यह सच है कि सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है और हमें जानकारी प्राप्त करने में बहुत मदद करता है लेकिन फिर भी हमें इसका आदी नहीं होना चाहिए। आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी कि किसी भी चीज का बेहद इस्तेमाल करना दुष्परिणाम की ओर ले जाता है, इसलिए जरूरी है कि हम सोशल मीडिया के उपयोग को भी एक सीमा तक ही रखें और उसे अपनी जिंदगी पर इतना हावी ना होने दें कि वह हमारी सोचने और समझने की शक्ति को भी अपने वश में कर ले!

दोस्तों आपको मेरा सोशल मीडिया पर ये लेख कैसा लगा मुझे कमेंट कर के बताए

नई शिक्षा नीति

New education policy

नई शिक्षा नीति यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी। इसका मतलब ये है कि कब तक स्कूलों में पढ़ना है, बोर्ड की परीक्षाएं कौन सी क्लास में होंगी। ग्रेजुएशन कितने साल का होगा, इस तरह के नियम तय करने वाली नीति को बीजेपी सरकार लेकर आ रही है, जिसे न्यू एजुकेशन पॉलिसी, 2020 नाम दिया गया है।

नई शिक्षा नीति 2020 के ड्राफ्ट को 29 जुलाई को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी। दोस्तों आपको लगता होगा कि यह निति सरकार के मन मे अचानक आया होगा,जैसा कि नोटबांदी और लॉकडॉउन के समय में हुआ था,लेकीन ऐसा नहीं है। आपके जानकारी के लिए बता दू कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नई शिक्षा नीति, बीजेपी के घोषणपत्र का हिस्सा था। और सत्ता में आने के बाद भी बीजेपी ने ये एजेंडा नहीं छोड़ा और आखिर 2020 में इसे लागू करने जा रही है।

दोस्तो एक और बात है कि अभी सिर्फ नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट को मंजूरी मिली है, अभी लागू होना बाकी है,उसके बाद भी कई इम्तिहानों से गुजरना होगा। तो फिर सवाल ये है कि क्या ये नई शिक्षा नीति की बातें शहरों से दूर गांव-देहात के उन बच्चों तक भी पहुंच पाएंगी? क्या जिन स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं, वहां अब खेलकूद के टीचर और जहा सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होता है,तो फिर क्या वहा पर ऐसी बाकी बातें लागू हो पाएंगी?

मानव संसाधन मंत्रालय, अब शिक्षा मंत्रालय

दोस्तों आपको बता दू कि मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। अब से एचआरडी मंत्री को शिक्षा मंत्री कहा जाएगा। जब देश आजाद हुआ था, तब से लेकर 1985 तक शिक्षा मंत्री और शिक्षा मंत्रालय ही हुआ करता था, लेकिन फिर राजीव गांधी सरकार ने इसका नाम बदलकर मानव संसाधन मंत्रालय कर दिया था। इस नाम को लेकर आरएसएस से जुड़े संगठन भारतीय शिक्षण मंडल ने आपत्ति जताई थी और साल 2018 के अधिवेशन में इसका नाम बदलने की मांग की थी। अर्जी ये थी कि मानव को संसाधन नहीं मान सकते, ये भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इसलिए अब इसका नाम बदल दिया गया है।

शिक्षा निति में बदलाव क्यों

Library

दोस्तो आपको लग रहा होगा कि पहले जब 10+2+3 का मॉडल चल रहा था तो फिर इसे बदलने की जरूरत क्या है, तो इसका कारण है कि बदलते वक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पावर बनाने के लिए नई शिक्षा नीति की जरूरत है। वर्ष 1986 में तैयार शिक्षा नीति में ,वर्ष 1992 में व्यापक संशोधन किया गया और यही नीति अभी तक प्रचलन में है। लेकिन बीते 28 सालों में दुनिया कहाँ-से-कहाँ पहुँच गई है, और हम लोग वहीं के वहीं हैं, इसी को देखते हुए देश की विशाल युवा आबादी की समकालीन ज़रूरतों और भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये यह शिक्षा नीति बनाई गई है। अब देखना है कि समय की कसौटी पर यह कितना खरा उतरती है।

नर्सरी से 12वीं तक क्या बदलाव हुआ

5+3+3+4 का फॉर्मूला
अब नर्सरी से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई को 5+3+3+4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बाँटने की बात नई शिक्षा नीति में कही गई है। पाँच साल का पहला चरण 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये है, इसे Foundation Stage कहा गया है। दूसरा चरण कक्षा 3 से 5 तक 8 से 11 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Preparatory Stage कहा गया है। तीसरा चरण कक्षा 6 से 8 तक 11 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Middle Stage कहा गया है। चौथा और अंतिम चरण कक्षा 9 से 12 तक 14 से 18 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Secondary Stage कहा गया है।

. इस निति से अब बोर्ड की परीक्षाओं का अहमियत घटाने की बात है। अब साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं कराई जा सकती हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में ऑब्जेक्टिव टाइप क्वेश्चन पेपर भी हो सकते हैं।

. इसके द्वारा स्कूलों के सिलेबस में बदलाव किया जाएगा। और नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे तथा वो पूरे देश में एक जैसे होंगे। जोर इस पर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवीं क्लास तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। भारतीय पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे। स्कूल में आने की उम्र से पहले भी बच्चों को क्या सिखाया जाए, ये भी पैरेंट्स को बताया जाएगा।

. नई शिक्षा नीति से अब 3 से 6 साल के बच्चों को अलग पाठ्यक्रम तय होगा, जिसमें उन्हें खेल के तरीखों से सिखाया जाएगा। इसके लिए टीचर्स की भी अलग ट्रेनिंग होगी।

. अब कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को यानी 6 से 9 साल के बच्चों को लिखना पढ़ना आ जाए, इस पर खास ज़ोर दिया जाएगा। इसके लिए नेशनल मिशन शुरू किया जाएगा।

. नई शिक्षा नीति से कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाए, बाकायदा बच्चों की इंटर्नशिप भी होगी, जिसमें वो किसी इलैक्ट्रीशियन के यहां हो सकती है या मेकेनिक की हो सकती है। इसके अलावा छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग होगी।तथा कोडिंग भी सिखाई जाएगी।

. अब बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में मूल्यांकन सिर्फ टीचर ही नहीं लिख पाएंगे,एक कॉलम में बच्चा खुद मूल्यांकन करेगा और एक में उसके सहपाठी मूल्यांकन करेंगे।

. अब प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक सबके लिए एकसमान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के इन्फ्रॉस्ट्रक्चर का विकास किया जाएगा।साथ ही नए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 3 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाने का लक्ष्य है।

उच्छ शिक्षा में क्या बदलाव हुआ

. इसके तहत विश्व की टॉप यूनिवर्सिटीज को देश में अपने कैम्पस खोलने की अनुमति दी जाएगी।

. अब आईआईटी, आईआईएम के समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू) स्थापित किए जाएंगे।

. नई शिक्षा नीति के द्वारा मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन की व्यवस्था होगी,यानी कि कोई स्ट्रीम नहीं होगी, कोई भी मनचाहे सब्जेक्ट चुन सकता है।यानी अगर कोई कैमिस्ट्री में ग्रेजुएशन कर रहा है और उसकी चित्रकला में रुचि है, तो चित्रकला भी साथ में पढ़ सकता है.।अब आर्ट्स और साइंस वाला मामला अलग अलग नहीं रखा जाएगा। हालांकि इसमें मेजर और माइनर सब्जेक्ट की व्यवस्था होगी।

. नई शिक्षा नीति से कॉलेजों की ग्रेडेड ऑटोनॉमी होगी। अभी एक यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कई कॉलेज होते हैं, जिनकी परीक्षाएं यूनिवर्सिटी कराती हैं,अब कॉलेज को भी स्वायत्ता दी जा सकेगी।

. नई शिक्षा नीति के जरिए, उच्च शिक्षा के लिए सिंगल रेग्युलेटर बनाया जाएगा, जैसे अभी यूजीसी, एआईसीटीई जैसी कई संस्थाएं हायर एजुकेशन के लिए हैं, अब सबको मिलाकर एक ही रेग्युलेटर बना दिया जाएगा। मेडिकल और लॉ की पढ़ाई के अलावा सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेग्युलेटर बॉडी भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा।

. नई शिक्षा नीति से रिसर्च प्रोजेक्ट्स की फंडिंग के लिए अमेरिका की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा, जो साइंस के अलावा आर्ट्स के विषयों में भी रिसर्च प्रोजेक्ट्स को फंड करेगा।

राफेल फाइटर जेट

लड़ाकू विमान

दोस्तों जैसा की आप सभी को पता होगा कि वायुसेना में पांच सुपरसोनिक राफेल लड़ाकू विमानों के शामिल होने के बाद अब इनकी संख्‍या छह हो गई है। और जैसे-जैसे इनकी संख्‍या में इजाफा हो रहा है वैसे-वैसे भारतीय वायु सेना की भी ताकत लगातार बढ़ती जा रही है। अंबाला एयरबेस पर राफेल विमानों को दो सुखोई एमकेआई विमान एस्‍कॉर्ट कर लाए थे।आपको बता दें कि फ्रांस निर्मित राफेल का पहला विमान RB 001 भारत को पिछले वर्ष अक्‍टूबर में मिला था। उस वक्‍त रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह खुद इसकी डिलीवरी लेने फ्रांस गए थे और उन्‍होंने इस विमान पर ऊँ बनाकर इसकी पूजा की थी।गौरतलब है कि भारत को फ्रांस से पूरे 36 राफेल विमान मिलने हैं, जिनमे से 6 राफेल मिल चुका है और बाकी 30 जल्द ही मिल जाएगा।इनमें से आधे विमान को अंबाला एयरबेस और आधे विमान को पश्चिम बंगाल के हाशिमारा एयरबेस पर रखे जाएंगे। राफेल विमान को 11 गोल्डल ऐरा स्कवाड्रन के पायलट उड़ाएंगे, जिनकी ट्रेनिंग फ्रांस में पूरी हो चुकी है।

राफेल विमान की विशेषता

यह जेट एकसाथ जमीन से आसमान तक दुश्मनों को पस्त कर सकता है।इसकी ताकत का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि एक राफेल को रोकने के लिए पाकिस्तान को दो F-16 विमानों की जरूरत होगी।राफेल फाइटर जेट भारतीय वायु सेना की ताकत को नई उड़ान देनेवाला साबित होगा। क्योंकि भारतीय वायु सेना की जरूरतों के अनुसार इस विमान में काफी अडवांस्ड तकनीक का प्रयोग किया गया है। विमान जमीन पर दुश्मन को मात देने के साथ ही आसमान में भी विरोधियों को पस्त करने में सक्षम है। राफेल एक मिनट में 18 हजार मीटर की ऊंचाई पर जा सकता है। इस लिहाज से ये पाकिस्तान के F-16 या चीन के J-20 से बेहतर है। इस विमान का कॉम्बैट रेडियस 3700 किमी है। इसका अर्थ है कि ये अपनी उड़ान वाली जगह से इतनी दूर हमला कर वापस लौट सकता है। इस विमान में हवा में ही ईंधन भरने की क्षमता है। इसलिए ये एक ही समय में अधिक दूरी तय कर सकता है।ये मिसाइल आसमान से जमीन पर वार करने के लिए कारगर साबित हो सकती हैं क्योंकी इसमे HAMMER तथा Range missile लगा हुआ है,आपको बता दें कि HAMMER का इस्तेमाल मुख्य रूप से बंकर या कुछ छिपे हुए स्थानों को तबाह करना होता है,तथा Range Missile, इनका इस्तेमाल कम दूरी के लिए किया जाता है। दोस्तों मिस्र और फ्रांस में पहले से ही राफेल जेट का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन भारत को मिलनेवाला राफेल अधिक अडवांस्ड तकनीक से लैस है।भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इसमें कुछ अतिरिक्त फीचर्स भी जोड़े गए हैं।

जैसे,विमान में बहुत ऊंचाईवाले एयरबेस से भी उड़ान भरने की क्षमता है। जिससे लेह जैसी ऊंचाईवाली जगहों और ठंडे मौसम में भी विमान तेजी से काम कर सकता है।
विमान में हेल्मेट माउंटेड साइट्स और लक्ष्य को भेदने की प्रणाली है ताकि पायलट बहुत कम समय में missile को शूट कर सकें।
अगले 50 सालों तक के लिए फ्रेंच इंडस्ट्रियल सपोर्ट भी मिलेगा।

मिसाइल अटैक का सामना करने के लिए विमान में खास तकनीक का प्रयोग किया गया है।

एशिया में बढ़ेगी भारत की ताकत

लड़ाकू विमान राफेल मिलने के बाद भारतीय वायुसेना की ताकत में जबरदस्त इजाफा होगा। जिससे चीनी तथा पाकिस्तानी वायु सेना पर राफेल के शामिल होने के बाद से बहुत अधिक दबाव बढ़ेगा। रफेल जेट के आने के बाद एशियाई देशों में वायु सेना मामले में भारत को जबरदस्त बढ़त मिल गई है। जल्द ही इस विमान को वायुसेना में शामिल कर लिया जाएगा। जिससे अब भारत को कोई भी पड़ोसी देश आंख नहीं दिखा पायेगा।भारतीय सेना की ताकत को कई गुना बढ़ा देगा फ्रांस से मिलने वाला राफेल लड़ाकू विमान। यह विमान कई तरह की मिशालों समेत परमाणु बम गिराने में भी सक्षम है।
राफेल लड़ाकू विमान की क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह 55000 फुट ऊंचाई से भी दुश्मन के ठिकानों पर सटीक निशाना लगाकर उन पर बम गिरा सकता है।
राफेल लड़ाकू विमान अत्याधुनिक फाइटर प्लेन यूरोफाइटर टायफून, ब्लॉक60, मिग-35,सुपर हॉर्नेट, साब ग्रिपिन जैसे फाइटर जेट की टक्कर का है।

राफेल का भारत में प्रवेश

भारत की फ्रांस से 128 अत्याधुनिक लड़कू विमान “राफेल” खरीदने की डील हुई थी इसके तहत 36 विमान फ्रांस से आने वाले है,जिसमें से 6 रफेल आ चुके है बाकी के 30 जल्द ही मिलने वाले हैं, जबकि 108 विमानों का निर्माण भारत में किया जाएगा। फ्रांसिसी भाषा में राफेल का मतलब तूफान होता है और यह एक ऎसा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान है जिसके भारतीय सेना में शामिल होने पर उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। भारत के पास राफेल आते ही चीन और पाकिस्तान जैसे देश हवाई हमलों के मामलों में भारत से खौफ खाने लगेगें । अभी हाल फिलहाल सिर्फ दो ही देशों के पास है राफेल विमान,लेकिन अब
भारत दुनिया का तीसरा ऎसा देश है जो राफेल विमान की ताकत रखने वाला है। फिलहाल इस बेहद खतरनाक लड़ाकू विमान को फ्रांस की वायुसेना, जलसेना और थल सेना के अलावा मिश्र की सेना के पास है।

आपको बता दे कि भारत देश के साथ -साथ इन 6 देशों की भी ताकत बनेगा राफेल- विमान
दो इंजन वाले इस फ्रांसिसी विमान की ताकत को देखते हुए भारत और मिश्र के अलावा स्पेन, यूके,जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया और सऊदी अरब भी इसे खरीदने की तैयारी कर चुके है। इन सभी 6 देशों को कुल मिलाकर 707 विमान,फ्रांस बेचेगा।

राफेल डील को लेकर कुछ घरेलू विवाद

राफेल विमान को लेकर एक तरफ जहां भारत के लोगो में उत्साह है वहीं दूसरी तरफ कुछ राजनैतिक विवाद भी सामने आ रहे है।यूपीए सरकार कह रही है कि हमारे समय में एक राफेल की कीमत लगभग 600 करोड़ रुपए में तय हुई थी।लेकिन एनडीए सरकार में यह डील1600 करोड़ रुपए में हुई है।
इसके जवाब में एनडीए सरकार का कहना है कि अब जो राफेल डील हुई है उसमें राफेल के साथ मेटिओर और स्कैल्प मिसाइलें भी मिलेंगी। मेटिओर 100 किलोमीटर, जबकि स्कैल्प 300 किलोमीटर तक सटीक निशाना साध सकती हैं। इनमें ऑन बोर्ड ऑक्सीजन रिफ्यूलिंग सिस्टम भी लगा है। सरकार का दावा है कि राफेल बनाने वाली ‘दसॉल्त’ कंपनी इसे भारत की भौगोलिक परिस्थितियों और जरूरतों के हिसाब से डिजाइन करेगी। इसमें लेह-लद्दाख और सियाचिन जैसे दुर्गम इलाकों में भी इस्तेमाल करने लायक खास पुर्जे लगाए जाएंगे।

दोस्तों,इस लेख को लिखने के लिए मैंने कुछ शब्द न्यूजपेपर तथा न्यूज चैनल से लिए है।आपको यह लेख कैसा लगा मुझे कॉमेंट कर के जरूर बताएं

डिजिटल इंडिया मार्केटिंग

डिजिटल इंडिया

डिजिटल इंडिया

दोस्तों आजकल आपने एक नाम बहुत जोरों-शोरो से सुना होगा जिसका नाम है डिजिटल इंडिया। इस देश को डिजिटल रूप से सशक्त देश बनाने के लिए भारत सरकार द्वारा चलाया गया एक अभियान है। इस अभियान को शुरू करने का उद्देश्य कागजी कार्रवाई को कम करके भारतीय नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक सरकारी एवं गैर सरकारी सेवाएं प्रदान करना है।

इस योजना का उद्देश्य है समय और मानव शक्ति को काफी हद तक कम करना । जिसके लिए भारत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को उच्च गति के इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ने के लिए 1 जुलाई 2015 को यह पहल शुरू की थी ताकि लोगों को भाग दौड़ न करना पड़े तथा वे अपने नजदीकी जन सेवा केन्द्र पर जाकर सरकारी सेवाओ का लाभ उठा सके।

डिजिटल इंडिया के जरिए सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ मिलता है

इस योजना को 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था लेकीन कुछ कारणों की वजह से यह अभी भी अधूरा दिख रहा हैं,आशा है कि जल्द ही सभी लोग इस कार्यक्रम को अपनाने लगेगें। इस कार्यक्रम की निगरानी और नियंत्रण के लिए डिजिटल इंडिया सलाहकार समूह की व्यवस्था की गई है।

डिजिटल इंडिया के उद्देश्य

डिजिटल इंडिया पोर्टल

दोस्तों डिजिटल इंडिया,योजना को सफल बनाने के लिए सबसे पहले सरकार ने आधार कार्ड की मदद से लोगों का बायोमेट्रिक डाटा लिया जिससे उनकी अद्वितीय पहचान मिल सकें। और सभी भारतीय लोगों को अद्वितीय पहचान मिलने के बाद भारतीय नागरिकों से सभी सेवाओं जैसे मोबाइल नंबर, PAN, जीवन बीमा,बैंक अकाउंट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, गैस कनेक्शन, को आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है।

उसके बाद आधार कार्ड की सहायता से लोगों को सभी सुविधाएँ दी जा रही हैं। इससे लोगों की पहचान सही प्रकार से हो पा रही है,जिससे बीच में भ्रष्टाचार करने वाले कम हो गये हैं। आज आप घर पर बैठे आधार की मदद से अपना PAN अप्लाई कर सकते हैं, मोबाइल सिम खरीद सकते हैं, और ऐसी कई सेवाएं हैं जो Online KYC और OTP की सहायता से कुछ ही मिनटों में पूरे हो रहे हैं जिनके लिए कभी लोगों को महीनों तक इंतजार करना पड़ता था।
डिजिटल इन्डिया के द्वारा अब आप ऑनलाइन शौपिंग वेबसाईट पर घर बैठे सामान खरीद सकते हैं और अपना समय और पैसा बचा सकते हैं।
आज के समय में लगभग सभी भारतीय बैंकों में ऑनलाइन बैंकिंग और ATM की सुविधा है जिसकी सहायता से लोग घर बैठे सभी पैसों का लेन-देन कर सकते हैं। अब PAN Card को भी आधार से जोड़ा जा रहा है जिसकी मदद से कोई भी आयकर चोरी या घोटाला नहीं कर पायेगा और साथ ही आप TDS भी घर में बैठे भुगतान कर सकते हैं। जिससे उनका मूल्यवान समय बचेगा

डिजिटल इंडिया के कार्य

डिजिटल इंडिया कार्ड

डिजिटल इण्डिया योजना के अनुसार भारत में छोटे गाँव से लेकर शहर तक सभी जगह हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा दिया जा रहा है,जिसकी सहायता से लोग ऑनलाइन की सुविधाओं का उपयोग करना सीख रहे हैं,और उसे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बना रहे हैं। दोस्तो आज के समय में अधिकतर कार्यालयों में इंटरनेट के माध्यम से काम हो रहा है।लेकिन अभी भी कुछ सरकारी कार्यलयों में ऑनलाइन काम शुरू नहीं हुआ है। इस योजना के अनुसार सभी गवर्नमेंट आर्गेनाइजेशन में जिसमें अभी ऑनलाइन सुविधा उपलब्ध नहीं है,उसमे भी इस योजना के अनुसार बहुत ही जल्द सभी सेवाओं को ऑनलाइन कर दिया जाएगा। ऑनलाइन सेवाओं की सहायता से लोगों को अब ज्यादा देर तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा और भ्रष्टाचार भी कम हो जायेगा।अब नौकरी के लिए और स्कूलों में आवेदन देना बहुत आसान हो गया है क्योंकि अब सब कुछ डिजिटल रूप से लिंक किया जा रहा है। डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम से देश के करीब 3 लाख पंचायतों के समेत लगभग 5.5 लाख गांवों को ब्रॉडबैंड से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था। जो अभी हाल ही में पूरा होता दिख रहा है। डिजिटल इंडिया के पहले सरकार द्वारा विभिन्न स्कीम चलाई जा रही थी। ताकि इन स्कीमों के तहत गरीबों और जरुरतमंद लोगों को विभिन्न मदद प्रदान की जा सके। लेकिन असल में इन स्कीमों को जन तक पहुंचाया ही नहीं जाता था और बीच में ही स्कीम के अनुसार अयोग्य लोग इसका फायदा उठा लेते थे। इस प्रकार के लोभ और अनैतिक कार्यों को रोकने के लिए सरकार ने डिजिटल पैमेंट और डिजिटल प्रोग्राम का आरंभ किया है। नरेंद्र मोदी जी चाहते हैं कि डिजिटल इण्डिया का लाभ हर कोई उठा सके। इससे देश के कृषि क्षेत्र को भी लाभ होगा।दोस्तों अगर यह योजना आने वाले दिनों में भारत में पूरी तरह से सफल हो जाती है तो इससे देश के विकास में बहुत बड़ा योगदान मिलेगा। इससे लोग ऑनलाइन की सभी सेवाओं को उपयोग कर सकेंगे जिससे उनका काम जल्दी होगा तथा उनकी पूंजी अधिक सुरक्षित रहेगी।

डिजिटल इंडिया के लाभ

डिजिटल इंडिया का प्रमुख लाभ है कि यह भौतिक दस्तावेज को कम करेगा जिसके द्वारा कागजी कार्यवाही कम होगा। यह एक प्रभावशाली ऑनलाइन मंच है जो चर्चा, कार्य करना और वितरण करना जैसे विभिन्न दृष्टिकोण के द्वारा लोगो को प्रभावित करेगा

यह सरकार के द्वारा विभिन्न ऑनलाइन लक्ष्यों की प्राप्ति को सुनिश्चित करेगा। यह किसी भी स्थान से अपने दस्तावेज और प्रमाणपत्र को ऑनलाइन जमा करना, लोगों के लिए संभव बनाएगा जो शारीरिक काम को घटाएगा। तथा ई-हस्ताक्षर संरचना के द्वारा नागरिक अपने दस्तावेजों को ऑनलाइन हस्ताक्षरित करा सकते हैं।

ई-अस्पताल के माध्यम से महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को आसान बनाया जा सकता है। इसके बहुत से उदाहरण हैं जैसे – ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन,फीस जमा करना, ऑनलाइन लक्षणिक जाँच करना, डॉक्टर से मिलने का समय निश्चित करना, खून जाँच आदि। यह अर्जियां जमा करने, प्रमाणीकरण प्रक्रिया, अनुमोदन और संवितरण की स्वीकृति के द्वारा राष्ट्रिय छात्रवृति पोर्टल के माध्यम से लाभार्थी के लिए लाभ उपलब्ध कराता है।

डिजिटल इण्डिया अभियान एक बड़ा मंच है जो अपने नागरिकों के लिए पूरे देश भर में सरकारी और निजी सेवाओं के प्रभावशाली वितरण को आसान बनाता है।

डिजिटल इंडिया के हानि

दोस्तों जिस प्रकार से डिजिटल इंडिया अभियान के लाभ हैं उसी प्रकार से डिजिटल इण्डिया के नुकसान भी हैं। डिजिटल इण्डिया मिशन से हानि तो कुछ नहीं है लेकिन शॉर्ट-टर्म में डिजिटल इण्डिया का नुकसान गरीब और कम पढ़े लोगों को होगा क्योंकि उन्हें यह तकनीक समझने में और इससे अभियस्त होने में कुछ समय लग जायेगा।

गरीब लोग जिनके पास Android मोबाइल ही नहीं हैं वो BHIM APP का लाभ कैसे उठा सकते हैं। दोस्तों जैसा कि हम लोग जानते हैं, जब कोई भी बड़ा बदलाव होता है तो वह एक झटके में नहीं होता है उसके लिए वक्त और अभ्यास चाहिए होता है। आज के समय में डिजिटल इण्डिया मिशन सफलता के कदमों को तेज गति से छू रही है।

आशा है कि जल्द ही पूरा भारत, डिजिटल इंडिया के महत्व को समझेगा,

दोस्तों आपको यह लेख कैसी लगी, हमें कॉमेंट कर के बताएं

अमेरिका-चीन की लड़ाई में फायदा किसी तीसरे को

चीन-अमेरिका वॉर


अमेरिका और चीन के बीच छिड़ने वाली है जंग

दोस्तों क्या आपको नहीं लगता कि अमेरिका और चीन में जो ट्रेड वार चल रहा है, उससे उनका नुकसान तो होगा ही साथ ही साथ विश्व के अन्य सभी देश भी इससे प्रभावित होंगे क्यूंकि मुख्य रूप से दुनियां के निर्यातक देश तो यही दोनों है। कुछ भी हो ऐसे में अगर इन दोनों में आपसी संबंध अच्छे नहीं हुए तो आने वाले समय में वर्ल्ड वार-3 जरूर होगा, और एक बार फिर ये दुनिया दो भागों में बंट जाएगा जिसका नतीजा बहुत बुरा होगा।क्यूंकि आज के समय में लगभग हर एक देश के पास परमाणु हथियार के साथ-साथ बायोलॉजिकल हथियार भी है, ऐसे में चाइना और अमेरिका का ये ट्रेड वॉर बहुत घातक होने वाला है।

चीन या अमेरिका आखिर किसने फैलाया कोरोना वायरस

दोस्तों क्या आपको नहीं लगता कि चीन और अमेरिका दुनिया से झूठ बोल रहे हैं,और कुछ छुपाने की कोशिश कर रहे हैं,
क्यूंकि एक तरफ जहां चीन में जन्मा यह वायरस दुनिया भर में कोहराम मचा रहा है और हर संभव कोशिशों के बाद भी यह संख्या तेज़ी के साथ बढ़ती जा रही है ,तो फिर चीन में यह आंकड़ा इतना कम कैसे है,आखिर इटली अमेरिका और स्पेन जैसे डेशों के मुकाबले इसने कम संख्या में कैसे कंट्रोल कर लिया ?

और दूसरी तरफ अमेरिका जिसे विश्व रक्षक,विश्व विजेता,वर्ल्ड लीडर इत्यादि नामों से जाना जाता है,और जो दावा करता है कि वह अपने देश के एक-एक नागरिकों की रक्षा स्वयं कर सकता है, तो फिर ऐसी क्या बात हो सकती है कि अन्य देशों के मुकाबले अमेरिका में यह आंकड़ा बहुत अधिक है।क्यूंकि अमेरिका ने इटली जैसी लापरवाही भी नहीं की। ऐसा भी नहीं है कि अमेरिकी सरकार या अमेरिकी एजेंसी को कोरोना के खतरे का अंदाजा नहीं था।
दोस्तों सोचने वाली बात तो यह है कि ऐसी कौन सी बात हो सकती है कि एक तरफ चाइना अपने आंकड़े इतना कम दिखा रहा है,जो कि जनसंख्या के मामले में प्रथम स्थान पर है, और जहां से कोरोना वायरस की उत्पत्ति हुई है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका,जिस देश में कोरोना वायरस इटली, ईरान,स्पेन के बाद आया जिसकी वजह से उसको सतर्क होने का मौका भी मिला था। फिर अमेरिका में इतना अधीक आंकड़ा कैसे सामने आ रहा है, जो देश चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी सकल घरेलू उत्पाद का अन्य देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा पैसे खर्च करता हो उस देश में इतना आंकड़ा आना हजम नहीं होता।
दोस्तों अगर आप समाचार देखते होंगे तो आपको यही देखने को मिलता होगा कि चीन और अमेरिका एक दूसरे पर आरोप लगाते है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति तुम्हारे देश में हुई है।
क्यूंकि अमेरिका यह मानता है कि कोरोना वायरस चीन ने ही फैलाया है और इसीलिए वह विश्व स्वास्थ्य संगठन से माँग करता रहा है कि इस वायरस को वुहान वायरस के नाम से जाना जाए।लेकिन पता नहीं क्यों अमेरिका को इस पर किसी भी देश का साथ नहीं मिला।शायद वे लोग असलियत जानते होंगे या फिर चीन से डर गए होंगे। और शायद किसी देश का समर्थन न मिलने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे कोविड-19 का नाम दे दिया,और  तभी से अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन का एजेंट कहना शुरू कर दिया। और उसने यह भी कहा कि अगली बार से वह विश्व स्वास्थ्य संगठन को पैसे नहीं देगा।
दोस्तों आपके जानकारी के लिए बता दुं कि अमेरिका,विश्व स्वास्थ्य संगठन को हर साल लगभग 37 अरब रुपए देता है।ताकि यह नई-नई बीमारियों का पता लगा सके और उसका दवा बना सके। वहीं दूसरी तरफ चीन दावा करता है कि वुहान में अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद से ही चीन में कोरोना वायरस मिला है, यह अमेरिका की चाल हो सकती है,चीन को। विश्व में अलग-थलग करने के लिए

दोस्तों आप मुझे कॉमेंट कर के बताएं कि कोरोना वायरस किस देश में मिला है?

चीन या अमेरिका कौन करेगा विश्व का नेतृत्व

चीन – अमेरिका के बीच वर्चस्व की लड़ाई

कोरोना वायरस के कहर की वजह से एक तरफ अमेरिका लड़खड़ाता दिख रहा है,और वह खुद के नागरिकों की हिफाजत नहीं कर पा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ चीन बड़ी ही तेज़ी के साथ दूसरे देशों की मदद करने की कोशिश में लगा हुआ है। इसमें देखना बहुत दिलचस्प होगा कि आगे विश्व की नेतृत्व कौन करेगा क्योंकि विश्व रक्षक अमेरिका इन दिनों अपने ही नागरिकों की  रक्षा करने में जुटा हुआ है।

चीन-अमेरिका के बीच दोस्ती की शुरुवात

दोस्तों बात उन दिनों की है जब
1970 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के समय में उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने चीन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। इसके बाद दोनों देश, सोवियत संघ के ख़िलाफ़ एक अर्ध गठबंधन के तौर पर काम करते रहे। इस दौरान, अमेरिका लगातार चीन को अपनी सैन्य क्षमताएं विकसित करने में सहयोग देता रहा, ताकि सोवियत संघ के ख़िलाफ़ एक ताक़तवर कम्युनिस्ट देश को खड़ा किया जा सके। इस दौरान अमेरिका ने चीन की सेना को उच्च तकनीक वाली कई हथियार बनाने में भी मदद की। और लगभग 1980 के दशक के आख़िर में चीन को अमेरिका ने कंप्यूटर, उच्च तकनीक वाली कई मशीन दिए, इसके अलावा चीन के वैज्ञानिकों को अमेरिका ने ट्रेनिंग भी दी, साथ ही साथ चीन को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी अमेरिकी तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों से बहुमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ।
इसके बाद दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में ज़बरदस्त उछाल आया। दोस्तों ये बात किसी से अछूता नहीं है कि अमेरिका ने ही चीन को विश्व व्यापार संगठन में प्रवेश करने में मदद की। इसके साथ ही साथ अमेरिका ने चीन को दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश बनने में भी मूल्यवान योगदान दिया। और चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया। इसके अलावा अमेरिका को ये लगा कि चीन, व्यापार से आगे भी उसके लिए काफ़ी काम आ सकता है, और विश्व व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में सहयोगी साबित हो सकता है। चीन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।जो परमाणु कार्यक्रम, शांति स्थापना, मानवीय मदद और इस्लामिक कट्टरपंथ से लड़ने में अमेरिका का मददगार हो सकता है, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने चीन की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

चीन या अमेरिका कौन बनाएगा पहले कोरोना वायरस की दवा

चीन और अमेरिका इन दिनों कोरोना वायरस की दवा बनाने में जी जान से लगे हुए है,दोनों ही देश,पूरे विश्व को दिखाना चाहते हैं कि वे ही विश्व रक्षक हैं,और पूरे विश्व का नेतृत्व वे ही कर सकते है।जिसके लिए कोरोना वायरस की दवा बनाने के लिए वे दोनों पैसे को पानी की तरह बहा रहे हैं,जिससे उनके देशों में अलग अलग संस्थानों में रिसर्च चल रहा हैं ।

वे दोनों वैक्सीन बनाने में इस कदर लगे हुए हैं,मानो अगर दूसरा देश, वैक्सीन बना लेता है, तो ये उनकी पूरे विश्व में बेइज्जती होगी।

दोस्तों ये मेरा स्वयं का विचार है,आपका विचार क्या है? मुझे कॉमेंट कर के बताएं

भारत-चीन सीमा विवाद

चीन का नक्शा

भारत और चीन के बीच तिब्बत

दोस्तों आपके जानकारी के लिए बता दूं कि पहले चीन,भारत का पड़ोसी देश नहीं था। जी हां आपने सही सुना।
तो दोस्तों,

तिब्बत ही वह देश था जिसने भारत और चीन को भौगोलिक रूप से हजारों सालो तक अलग और शांति के साथ रखा था। लेकिन 1950 में तिब्बत पर चीन के आक्रमण और कब्जे के बाद ही दोनों देश एक दूसरे के पड़ोसी देश बनें हैं और न ही इससे पहले इनमें कोई सीमा विवाद या मतभेद होते थे,और न ही इनमें कोई एक दूसरे के प्रति कोई लगाव था। लेकिन जब भारत 1947 में आजाद हुआ और उसी समय 1949 में चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी,जिसका उद्देश्य अपने देश की सीमा में विस्तार करना है,चीन की इसी नीति के चलते इन दोनों देशों में मतभेद होना शुरू हो गया।यही कारण है कि पंचशील समझौता होने के बावजूद जिसमें यह भी शामिल था कि कोई एक दूसरे के सीमा में प्रवेश नहीं करेगा।उसने 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया और हमारे जम्मू कश्मीर के एक भाग को जिसे अक्शाई चीन कहते है उसपर कब्जा कर लिया।

भारत-चीन विश्व की उभरती हुई महाशक्तियां

दोस्तों जैसा कि हम लोग जानते हैं कि
आज के समय में भारत और चीन, जो कि विश्व की जनसख्या के एक-तिहाई भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं,जो की व्यापार के लिहाज से भी पूरे विश्व के देशों की ध्यान आकर्षित करते है।और ऐसा लगता है, आने वाले समय में पूरे विश्व में इन दोनों का ही राज होगा।
क्यूंकि इन दोनों देशों के पास संसाधन के साथ साथ मैन पॉवर भी है।

भारत-चीन एक दूसरे के विरोधी


दोस्तों ये दोनों देश एक दूसरे को बहुत टक्कर देते हैं,चाहे वह व्यापार हो, या फिर सीमा विवाद कोई किसी से पिछे नहीं रहना चाहता।दोनों देश जी जान से एक दूसरे को टक्कर देते हैं।एक 4th generation ki लड़ाकू विमान बनाता है, तो दूसरा 5th generation की खरीदता है।एक अपने आप को शेर कहता है तो दूसरा सवा शेर।
दोस्तो आप के जानकारी के लिए बता दूं कि एक तरफ भारत जहां गणतंत्र एवं लोकतंत्र जैसी विचारधारा रखता है तो वहीं दूसरी तरफ चाइना साम्यवादी जैसी विचार धारा रखता है जिसकी वजह से दोनों की राजनीति सोच और रणनीति में बदलाव नजर आता है जिसकी वजह से इन दोनों देशों का मेल नहीं हो पाता है।इसलिए दोनों ही देश एक दूसरे का विरोध करते है।

भारत-चीन में मतभेद

दोस्तो हाल ही में दक्षिणी चीन सागर में भारत अपनी रुचि दिखा रहा है,जो कि चाइना को नागवार लग रहा है तथा भारत ने तिब्बत के दलाई लामा को सरण दिया है जो कि चाइना को ये बाते पसंद नहीं है इन दोनों बातों को लेकर इन दोनों के बीच मतभेद हो रहा है।
दोस्तों ये अलग बात है कि आय दिन इन दोनों के बीच सांतिपुर्वक समझौते होतें हैं। लेकिन इन दोनों देशों के बीच सीमा विवाद इतना जटिल है कि मानो ऐसा लगता है कि ये दोनों कभी भी एक दूसरे से संतुष्ट नहीं हो सकते।और दूसरा कारण है कि एक तरफ भारत जहां समाज कल्याण की भावना रखता है, तो दूसरी तरफ चाइना विस्तारवादी नीति की भावना रखता है।
इन्हीं दोनों वजहों से इं दोनों के बीच अच्छा रिश्ता होना असम्भव लगता है।

भारत-चीन व्यापार

दोस्तों आपको एक और बात बता दूं कि एक तरफ जहां चाइना हमारे देश से प्रति वर्ष 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार करता है तो दूसरी तरफ भारत सिर्फ 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष का व्यापार करता है चाइना देश के साथ,जिसका साफ साफ मतलब है कि चाइना हमारे देश से प्रति वर्ष 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर अपने देश में लेकर चला जाता है।यानी भारत देश को 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर का घाटा होता है चाइना देश के साथ।

तो दोस्तो आप मुझे बताइए कि क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हमारे देश के लोगो को स्वदेशी वस्तुएं इस्तेमाल करना चाहिए,क्या हुआ कुछ स्वदेशी वस्तुएं महंगा है,लेकिन है तो अपने ही देश का न आप एक बार अपने दिल से पूछिए कि ऐसे चाईनीज सस्ते समान खरीदने से क्या फायदा होगा जिस पैसे को इस्तेमाल कर चीन हमारे देश में ही अशांति फैला रहा है।
दोस्तो अभी हाल ही में मैंने देखा कि एक चाइना मोबाइल ने फ्लिपकार्ट पर सेल लगाया जिसको 2 मिनट में ही 1.5 अरब रुपए का मोबाइल हमारे देश के लोगों ने खरीद लिया।
दोस्तो क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि हमारे देश के लोग स्वदेशी वस्तुओं से ज्यादा सस्ते चाइना वस्तुओं को खरीदने में ज्यादा इच्छुक हैं।

भारत-चीन सीमा विवाद

कड़वी सच्चाई तो यही है कि चीन LAC रेखा को स्पष्ट करने को तैयार नहीं है । क्यूंकि ऐसा करने पर भारत पर सैन्य दबाव कम हो जाएगा। भारत और चीन एक ऐसे पड़ोसी देश है जो लगभग 30 वर्षों से सीमा को लेकर लगातार चल रहे संवाद के बावजूद इनका कोई निर्धारित बॉर्डर नहीं है

और सच्चाई यह है कि विश्व इतिहास में इन दो देशों की सबसे लंबी चल रही विवाद के विफल रहने के लिए चीन ही जिम्मेदार है। क्योंकि एक तरफ जहां वह अक्षाई चीन पर किए गए कब्जे पर बात नहीं करना चाहता तो वहीं दूसरी तरफ अरुड़ांचल प्रदेश के

तवांग घाटी को अपने भू-भाग में शामिल करने के लिए, जी जान से कोशिश कर रहा है ,जो कि स्पष्ट रूप से महत्त्वपूर्ण गलियारा है, इससे यही बात पता चलती है , कि चीन निसंदेह इस नियम पर चल रहा है कि जो कुछ उसने कब्जा लिया है ,उस पर कोई प्रश्न नहीं उठा सकता पर जिन क्षेत्रों पर उसका दावा है केवल उसी के विषय में बात की जा सकती है ।

यही कारण है कि पिछले कुछ वर्षों में भारतीय सीमा में चीनी सेना द्वारा घुसपैठ की 500 से अधिक वारदातें हुई हैं ।

भारत-नेपाल विदेश नीति

हिमालय पर घूमते हुए पर्यटक

भारत-नेपाल के विचारो में मतभेद:

दोस्तों आज हम लोग बात करेंगे भारत और नेपाल के संबंध के बारे में, कि कैसे दोनों देशों की सदियों पुरानी मित्रता में दरार आ गया, और जिसका कारण कोई और नहीं दोस्तों बल्कि चाइना है।जी हां दोस्तों चीन ही पुराने दोस्ती में दरार का कारण है,आज आप लोगों को पता चल ही जाएगा कि आखिर कैसे इन दोनों देशों के दोस्ती में दरार आयी तो दोस्तो बात उन दिनों की है,जब नेपाल में संविधान को लेकर घरेलू हिंसा हो रहा था।और सत्ता पलटी का दौर चल रहा था। तभी से भारत और नेपाल में आपसी विचार धारा का टकराव हुआ और इन दोनों के बीच विवाद होना शुरू हुआ।

दोस्ती में दरार का झलक:

दोस्तो क्या आपको पता है कि हाल ही में भारत में आयोजित हुए सैन्य अभ्यास MILEX-18  में नेपाल ने अचानक शामिल होने से इनकार कर दिया है, पुणे में हुए इस अभ्यास में बिम्सटेक देशों को आमंत्रित किया गया था जिसका नेपाल देश भी सदस्य है, लेकिन उसने इस अभ्यास में सामिल होने से मना कर दिया जिससे भारत सोच में पड़ गया है।

चीन की चाल:

दोस्तो आपको क्या लगता है कि नेपाल का भारत से रुख मोड़ने के पीछे चालबाज चीन का हाथ है क्युकी दोस्तों
जहां नेपाल ने भारत देश में सैन्य अभ्यास करने से मना कर दिया वहीं दूसरी तरफ चीन के साथ सागरमाथा फ्रेंडशिप नामक सैन्य-अभ्यास के दूसरे चरण में शामिल होने के लिये मंजूरी प्रकट कर दिया। तो दोस्तों आप बताइए कि इसे ‘चीनी सड़यंत्र कहा जाए या फिर नेपाल की कूटनीतिक चाल क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से चीन लगातार भारत सरकार को परेशान करने की कोशिश कर रहा है। बात चाहे जो भी हो इससे भारत को बहुत ही नुकसान है क्यूंकि नेपाल हमारा बहुत पुराना और गहरा साथी है, लेकिन चाइना की कूटनीति से भारत और नेपाल की दोस्ती में दरार आ रहा है।
अब देखना ये है कि मोदी जी ऐसी कौन सी कूटनीति अपनाते हैं,जिससे भारत और नेपाल की दोस्ती पहले की तरह पक्की हो जाए।

भारत की कूटनीति

दोस्तो अभी हाल फिलहाल भारत और नेपाल की तनाव बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ भारत के दूसरे पड़ोसी देश भी आंखे दिखा रहे है।
इससे क्या ऐसा नहीं लगता कि भारत देश की कूटनीति फीकी पड़ गई है।
और भारत को अपने कूटनीति में अपडेट होने की जरूरत है।

नेपाल की विचार धारा:

बौद्ध भिक्षुक

तो दोस्तो क्या भारत को इन सभी कोशिशों को नेपाल की चीन से बढ़ती नजदीकी का नतीजा है,के रूप में देखना उचित है?

देखने का नजरिया कुछ भी हो दोस्तो ऐसे में बड़ा सवाल है यह कि क्या भारत और नेपाल के बीच वर्षों पुराने संबंधों पर ‘चीनी चाल’ भारी पड़ रही है? या फिर यह मान लिया जाए कि इन दिनों नेपाल जरूरत से ज्यादा महत्त्

लालची बन गया है और भारत उसकीजरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा है।आपको क्या लगता है दोस्तो, क्या चीन भारत को दक्षिण एशिया में अलग थलग करने की कोशिश कर रहा है,या फिर यह मान लिया जाए कि नेपाल में इस समय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार है,जिससे चाइना के प्रति नेपाल का झुकाव बढ़ रहा है।

चाइना का नेपाल को समर्थन:

दोस्तो क्या आपको नहीं लगता कि भारत और नेपाल के बीच रिश्ते कुछ ज्यादा ही बिगड़ते जा रहे हैं। क्यूंकि जब 2015 में नेपाल में संविधान को लेकर आंदोलन हुआ था, उस समय भारत-नेपाल सीमा कई दिनों तक बंद थी।क्यूंकि नेपाल नहीं चाहता था कि भारत नेपाल के मामलों में दखल दे,जिसके कारण भारत और नेपाल के बीच तनाव बढ़ा था। दोस्तो आप लोगो को मै बता दूं कि इस समय नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी कि सरकार है,जो कि चाइना कि विचार धारा से मेल खाती है।यही कारण है कि दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ता गया ।
फिर ठीक एक साल बाद दोस्तो 2016 में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली भारत आएं और भारत के साथ अच्छे रिश्ते के बारे में कहा

उसके कुछ महीने बाद भारत और नेपाल के बीच 9 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए और ऐसा लग रहा था कि इसके साथ ही दोनों देशों के बीच तनाव खत्म हो जाएगा।लेकिन,यह बात चीन कोपसंद नहीं आयी,और उसने नेपाल को अपनी तरफ कर लिया और भारत को ट्रायंगल में उलझा दिया।और फिर कुछ दिन बाद जब नेपाली प्रधान मंत्री के पी शर्मा ओली जब चीन गए थे तब उन्होंने दोनों देशों के बीच 14 मुद्दों पर हस्ताक्षर किया। चीन इन दिनों नेपाल में भारी निवेश कर रहा है । वह नेपाल में सड़क, बिजली आदि
परियोजनाओं पर पहले से ही काम कर रहा है। यहां तक कि वह चीन और तिब्बत के बीच रेल बिछा रहा है जिसके रास्ते चाइना और नेपाल के बीच व्यापार आसान हो जाएगा।
दोस्तो आपको क्या लगता है कि चीन इतना सब कर के नेपाल की मदद कर रहा है।या इसके पीछे धोखेबाज चीन की कोई चाल है।
क्यूंकि जिस तरह से चीन नेपाल पर मेहरबान है,इसपर सक होना तो आम बात है
क्यूंकि दोस्तो

चीन नेपाल को कई चीनी बंदरगाहों को उपयोग करने की भी अनुमति दे दिया है।

नेपाल का लालच:

दोस्तो इतना मदद पाने से कोई भी देश उसके साथ खड़ा हो जाएगा।और अपने पुराने दोस्त से ही बैर करने को तैयार हो जाएगा,लेकिन एक बात याद रख लो दोस्तो  लालच करना बुरी बला होती है।और एक ना एक दिन उसके कर्मों का फल उसे जरूर मिलता है फिर वो चाहे एक इंसान हो या फिर कोई नेपाल जैसा लालची देश।

आशा है कि आगे ईन दोनों मित्रों के बीच संबंध अच्छे होंगे

BASIC CONCEPT OF ELECTRICITY

ELECTRICITY:

STATIC ELECTRICITY: जिसमे इलेक्ट्रॉन, रेस्ट कंडीशन में रहते हैं। जैसे;रगड़ द्वारा उत्पन्न electricity, इत्यादि

DYNAMIC ELECTRICITY:जिसमे , इलेक्ट्रॉन मूविंग कंडीशन में रहता है।          जैसे-Thermoelectricity, photoelectricity,pizeoelectricity

CONCEPT OF BASIC TERMINOLOGY

1.CONDUTOR:

Conductor

वह पदार्थ जिसमे मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है,जिसके कारण उसमे वैधुत धारा प्रवाहित होती है Conductor(चालक) कहलाता है।सभी धातुएँ विधुत की सुचालक होती हैं।जैसे-सिल्वर,कॉपर,अल्मुनियम, आदि।

2.SEMICONDUCTOR:

Semiconductor

वह पदार्थ जिसमे मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या चालको की अपेक्छा कम होती है जिसके कारण उसमे कम करेंट फ्लो होती है अर्धचालक कहलाता है।जैसे-सिलिकॉन,जर्मेनियम आदि।

3.INSULATOR:

Insulator

वह पदार्थ जिसमे मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या नगण्य होती है, जिसके कारण उसमे कर्रेंट फ्लो नही हो पाती है इंसुलेटर कहलाता है।सभी अधातुएँ विधुत की कुचालक होती है। जैसे- प्लास्टिक,रबर,लकड़ी,आदि।

4.ELECRIC CHARGE:

विधुत की मात्रा को इलेक्ट्रिक चार्ज कहते है,इसको Q या q अक्षर से denote करते है। इसका मात्रक Coulomb है। सूत्र:Q=it

5.ELECTRIC CURRENT:

इलेक्ट्रोन्स या फिर वैधुत आवेश के प्रवाह की दर  को वैधुत धारा कहते हैं,इसे I या i अक्षर से denote करते हैं।इसका मात्रक एम्पियर है।इसकी दिशा इलेक्ट्रोन्स के प्रवाह के बिपरीत होती है। सूत्र:  I=q/t

6.ELECTROMOTIVE: FORCE

इसे सेल, बैटरी,जनरेटर आदि श्रोतो द्वारा उत्पन्न किया जाता है।
इसको E या e से व्यक्त किया जाता है, तथा इसका S.I.यूनिट मात्रक वोल्ट है ।

E=W/Q= volt
जहाँ,
W= कार्य
Q=चार्ज

7.VOLTAGE:

यह एक इलेक्ट्रिक प्रेसर है जो इलेक्ट्रानों द्वारा उत्पन्न किया जाता है, इसको V या v से प्रदर्शित करते है। तथा इसका S.I. यूनिट वोल्ट है।

सूत्र; V=IR

8.ELECTRIC POTENTIAL:

एकांक धनात्मक आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य उस बिंदु का वैधुत विभव कहलाता है।

वैधुत धारा हमेशा उच्च विभव से न्यून विभव की ओर प्रवाहित होती है जिसके कारण यह वैधुत धारा की दिशा को तय करता है।

9.ELECTRIC POTENTIAL DIFFERENCE:

किन्ही दो विन्दुओं के बीच वैधुत विभव के अंतर को इलेक्ट्रिक पोटेंशियल डिफरेंस कहते हैं।

10.ELECTRICAL RESISTANCE:

वैधुत प्रतिरोध पदार्थो का वह वैधुत गुण है,जो पदार्थो में इलेक्ट्रोन्स के प्रवाह का विरोध करता है।

अर्थात वैधुत धारा को पदार्थो में बहने से रोकता है।इसको R या r अक्षर से व्यक्त करते हैं,तथा इसका S.I.यूनिट Ohm है।

अल्बर्ट आइंस्टीन के जीवन का पूरा परिचय

सुरुवाती दौर:

  

हेल्लो दोस्तों,आज मै आपको जिस जीनियस के बारे में बताने जा रहा हूं,उनका नाम है अल्बर्ट आइंस्टीन,
अल्बर्ट आइंस्टीन को 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है।
तो चलिए शुरू से शुरुवात करते हैं।

     अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 में जर्मनी में वुतटेमबर्ग के यहूदी परिवार में हुआ था।
        Albert Einstein परिवार यहूदी धार्मिक परम्पराओ को नहीं मानता था और इसीलिए आइंस्टीन कैथोलिक विद्यालय में पढने के लिए गये। लेकिन बाद में 8 साल की उम्र में वे वहा से स्थानांतरित होकर लुइटपोल्ड जिम्नेजियम (जिसे आज अल्बर्ट आइंस्टीन जिम्नेजियम के नाम से जाना जाता है) गये, जहा उन्होंने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की, वे वहा अगले 7 सालो तक रहे, जब तक उन्होंने जर्मनी नहीं छोड़ी।

  दोस्तों 1895 में आइंस्टीन ने 16 साल की उम्र में स्विस फ़ेडरल पॉलिटेक्निक, जुरिच की एंट्रेंस परीक्षा दी, जो बाद में Edigenossische Technische Hochschule (ETH) के नाम से जानी जाती थी। वे भौतिकी और गणित के विषय को छोड़कर बाकी दुसरे विषयो में वे पर्याप्त मार्क्स पाने में असफल हुए। और अंत में पॉलिटेक्निक के प्रधानाध्यापक की सलाह पर वे आर्गोवियन कैनटोनल स्कूल, आरु, स्विट्ज़रलैंड गये। 1895-96 में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा उन्होंने वही से पूरी की और अंत में

        स्नातक की डिग्री लेने के बाद सन 1902 में अल्बर्ट आइन्स्टाइन को स्विज़रलैंड के बर्न शहर में एक अस्थाई नौकरी मिल गयी | अब उन्हें अपने शोध लेखो को लिखने और प्रकाशित कराने का बहुत समय मिला | और उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के लिए मेहनत करना शुरू कर दिया और अंत में उन्हें डाक्टरेट की उपाधि भी मिल ही गयी।

अल्बर्ट आइंस्टीन के लिए 1905  एक साथ कई उपलब्धियों का वर्ष:

अल्बर्ट आइंस्टीन को 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. 1905 एक साथ उनकी कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष था. उसी वर्ष उन्होंने सर्वप्रसिद्ध सूत्र E= mc² की खोज किया था ‘सैद्धांतिक भौतिकी, विशेषकर प्रकाश के वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) प्रभाव के नियमों’ संबंधी उनकी खोज के लिए उन्हें 1921 का नोबेल पुरस्कार भी मिला था

आविष्कार:

     दोस्तों अल्बर्ट आइंस्टीन ने बहुत से अविष्कार किये जिसके लिए उनका नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिको में गिना जाने लगा. उनके कुछ अविष्कार इस प्रकार है –

सापेक्षता सिद्धांत:

अल्बर्ट आइंस्टीन के नाम को जिस चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी). उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है. आइंस्टीन के मुताबिक ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की ‘निरपेक्ष गति’ या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके. गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बना कर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है. 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ कहा जाने लगा.    

प्रकाश की क्वांटम  थ्योरी:

 दोस्तों आइंस्टीन की प्रकाश की क्वांटम थ्योरी में उन्होंने ऊर्जा की छोटी थैली की रचना की जिसे फोटोन कहा जाता है, जिनमें तरंग जैसी विशेषता होती है. उनकी इस थ्योरी में उन्होंने कुछ धातुओं से इलेक्ट्रॉन्स के उत्सर्जन को समझाया. उन्होंने फोटो इलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट की रचना की। E= MC square – आइंस्टीन ने द्रव्यमान और ऊर्जा के बीच एक समीकरण प्रमाणित किया, उसको आज  nuclear energy कहते है।

Brownian motion:

दोस्तों सायद आपको पता नहीं होगा लेकिन  यह अल्बर्ट आइंस्टीन की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी ख़ोज कहा जा सकता है, जहाँ उन्होंने परमाणु के निलंबन में जिगज़ैग मूवमेंट का अवलोकन किया, जोकि अणु और परमाणुओं के अस्तित्व के प्रमाण में सहायक है।

महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक

दोस्तों क्या आपको पता है? अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गांधी जी के बहुत बड़े प्रशंसक थे।

सत्येन्द्रनाथ बोस जी के साथ काम:

दोस्तों सायद आप यह बात नहीं जानते होंगे कि उन्होने भारत के भौतिकशास्त्री सत्येन्द्रनाथ बोस के सहयोग से ‘बोस-आइंस्टीन कन्डेन्सेशन’ नाम की पदार्थ की एक ऐसी अवस्था होने की भी भविष्यवाणी की थी, जो परमशून्य (– 273.15 डिग्री सेल्सियस) तापमान के निकट देखी जा सकती है। यह भविष्यवाणी, जो मूलतः सत्येन्द्रनाथ बोस के दिमाग़ की उपज थी, और उन्होंने उसके बारे में अपना एक पत्र आइंस्टीन को भेजा था, जो कि  1955 में पहली बार एक प्रयोगशाला में सही सिद्ध की जा सकी।

अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पत्र

दोस्तों दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ ही दिन पहले, अगस्त 1939 में, आइंस्टीन ने अमेरिका में रह रहे हंगेरियाई परमाणु वैज्ञानिक लेओ ज़िलार्द के कहने में आ कर एक पत्र पर दस्तखत कर दिए. यह पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट के नाम लिखा गया था. इसमें रूज़वेल्ट से कहा गया था कि नाज़ी जर्मनी एक बहुत ही विनाशकारी ‘नये प्रकार का बम’ बना रहा है या संभवतः बना चुका है. अमेरिकी गुप्तचर सूचनाएं भी कुछ इसी प्रकार की थीं, इसलिए अमेरिकी परमाणु बम बनाने की ‘मैनहटन परियोजना’ को हरी झंडी दिखा दी गयी।

लेकिन दोस्तों दुख इस बात का है कि जिस विश्व युद्ध के लिए यह बम बनाया गया था उसके खत्म हो जाने के बाद अमेरिका ने पहले दोनों बम 6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर गिरा दिए जो कि बहुत ही गलत था।

आइंस्टीन को इससे काफ़ी आघात पहुंचा. अपने एक पुराने मित्र लाइनस पॉलिंग को 16 नवंबर 1954 को लिखे अपने एक पत्र में खेद प्रकट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘मैं अपने जीवन में तब एक बड़ी ग़लती कर बैठा, जब मैंने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को परमाणु बम बनाने की सलाह देने वाले पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिये, हालांकि इसके पीछे यह औचित्य भी था। क्योंकि जर्मन लोग एक न एक दिन उसे जरूर बनाने कि कोशिश करते।