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अमेरिका-चीन की लड़ाई में फायदा किसी तीसरे को

चीन-अमेरिका वॉर


अमेरिका और चीन के बीच छिड़ने वाली है जंग

दोस्तों क्या आपको नहीं लगता कि अमेरिका और चीन में जो ट्रेड वार चल रहा है, उससे उनका नुकसान तो होगा ही साथ ही साथ विश्व के अन्य सभी देश भी इससे प्रभावित होंगे क्यूंकि मुख्य रूप से दुनियां के निर्यातक देश तो यही दोनों है। कुछ भी हो ऐसे में अगर इन दोनों में आपसी संबंध अच्छे नहीं हुए तो आने वाले समय में वर्ल्ड वार-3 जरूर होगा, और एक बार फिर ये दुनिया दो भागों में बंट जाएगा जिसका नतीजा बहुत बुरा होगा।क्यूंकि आज के समय में लगभग हर एक देश के पास परमाणु हथियार के साथ-साथ बायोलॉजिकल हथियार भी है, ऐसे में चाइना और अमेरिका का ये ट्रेड वॉर बहुत घातक होने वाला है।

चीन या अमेरिका आखिर किसने फैलाया कोरोना वायरस

दोस्तों क्या आपको नहीं लगता कि चीन और अमेरिका दुनिया से झूठ बोल रहे हैं,और कुछ छुपाने की कोशिश कर रहे हैं,
क्यूंकि एक तरफ जहां चीन में जन्मा यह वायरस दुनिया भर में कोहराम मचा रहा है और हर संभव कोशिशों के बाद भी यह संख्या तेज़ी के साथ बढ़ती जा रही है ,तो फिर चीन में यह आंकड़ा इतना कम कैसे है,आखिर इटली अमेरिका और स्पेन जैसे डेशों के मुकाबले इसने कम संख्या में कैसे कंट्रोल कर लिया ?

और दूसरी तरफ अमेरिका जिसे विश्व रक्षक,विश्व विजेता,वर्ल्ड लीडर इत्यादि नामों से जाना जाता है,और जो दावा करता है कि वह अपने देश के एक-एक नागरिकों की रक्षा स्वयं कर सकता है, तो फिर ऐसी क्या बात हो सकती है कि अन्य देशों के मुकाबले अमेरिका में यह आंकड़ा बहुत अधिक है।क्यूंकि अमेरिका ने इटली जैसी लापरवाही भी नहीं की। ऐसा भी नहीं है कि अमेरिकी सरकार या अमेरिकी एजेंसी को कोरोना के खतरे का अंदाजा नहीं था।
दोस्तों सोचने वाली बात तो यह है कि ऐसी कौन सी बात हो सकती है कि एक तरफ चाइना अपने आंकड़े इतना कम दिखा रहा है,जो कि जनसंख्या के मामले में प्रथम स्थान पर है, और जहां से कोरोना वायरस की उत्पत्ति हुई है। वहीं दूसरी तरफ अमेरिका,जिस देश में कोरोना वायरस इटली, ईरान,स्पेन के बाद आया जिसकी वजह से उसको सतर्क होने का मौका भी मिला था। फिर अमेरिका में इतना अधीक आंकड़ा कैसे सामने आ रहा है, जो देश चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी सकल घरेलू उत्पाद का अन्य देशों के मुकाबले सबसे ज्यादा पैसे खर्च करता हो उस देश में इतना आंकड़ा आना हजम नहीं होता।
दोस्तों अगर आप समाचार देखते होंगे तो आपको यही देखने को मिलता होगा कि चीन और अमेरिका एक दूसरे पर आरोप लगाते है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति तुम्हारे देश में हुई है।
क्यूंकि अमेरिका यह मानता है कि कोरोना वायरस चीन ने ही फैलाया है और इसीलिए वह विश्व स्वास्थ्य संगठन से माँग करता रहा है कि इस वायरस को वुहान वायरस के नाम से जाना जाए।लेकिन पता नहीं क्यों अमेरिका को इस पर किसी भी देश का साथ नहीं मिला।शायद वे लोग असलियत जानते होंगे या फिर चीन से डर गए होंगे। और शायद किसी देश का समर्थन न मिलने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे कोविड-19 का नाम दे दिया,और  तभी से अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन का एजेंट कहना शुरू कर दिया। और उसने यह भी कहा कि अगली बार से वह विश्व स्वास्थ्य संगठन को पैसे नहीं देगा।
दोस्तों आपके जानकारी के लिए बता दुं कि अमेरिका,विश्व स्वास्थ्य संगठन को हर साल लगभग 37 अरब रुपए देता है।ताकि यह नई-नई बीमारियों का पता लगा सके और उसका दवा बना सके। वहीं दूसरी तरफ चीन दावा करता है कि वुहान में अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद से ही चीन में कोरोना वायरस मिला है, यह अमेरिका की चाल हो सकती है,चीन को। विश्व में अलग-थलग करने के लिए

दोस्तों आप मुझे कॉमेंट कर के बताएं कि कोरोना वायरस किस देश में मिला है?

चीन या अमेरिका कौन करेगा विश्व का नेतृत्व

चीन – अमेरिका के बीच वर्चस्व की लड़ाई

कोरोना वायरस के कहर की वजह से एक तरफ अमेरिका लड़खड़ाता दिख रहा है,और वह खुद के नागरिकों की हिफाजत नहीं कर पा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ चीन बड़ी ही तेज़ी के साथ दूसरे देशों की मदद करने की कोशिश में लगा हुआ है। इसमें देखना बहुत दिलचस्प होगा कि आगे विश्व की नेतृत्व कौन करेगा क्योंकि विश्व रक्षक अमेरिका इन दिनों अपने ही नागरिकों की  रक्षा करने में जुटा हुआ है।

चीन-अमेरिका के बीच दोस्ती की शुरुवात

दोस्तों बात उन दिनों की है जब
1970 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के समय में उनके विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने चीन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। इसके बाद दोनों देश, सोवियत संघ के ख़िलाफ़ एक अर्ध गठबंधन के तौर पर काम करते रहे। इस दौरान, अमेरिका लगातार चीन को अपनी सैन्य क्षमताएं विकसित करने में सहयोग देता रहा, ताकि सोवियत संघ के ख़िलाफ़ एक ताक़तवर कम्युनिस्ट देश को खड़ा किया जा सके। इस दौरान अमेरिका ने चीन की सेना को उच्च तकनीक वाली कई हथियार बनाने में भी मदद की। और लगभग 1980 के दशक के आख़िर में चीन को अमेरिका ने कंप्यूटर, उच्च तकनीक वाली कई मशीन दिए, इसके अलावा चीन के वैज्ञानिकों को अमेरिका ने ट्रेनिंग भी दी, साथ ही साथ चीन को अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी अमेरिकी तकनीकी विशेषज्ञों और इंजीनियरों से बहुमूल्य सहयोग प्राप्त हुआ।
इसके बाद दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों में ज़बरदस्त उछाल आया। दोस्तों ये बात किसी से अछूता नहीं है कि अमेरिका ने ही चीन को विश्व व्यापार संगठन में प्रवेश करने में मदद की। इसके साथ ही साथ अमेरिका ने चीन को दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश बनने में भी मूल्यवान योगदान दिया। और चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार बन गया। इसके अलावा अमेरिका को ये लगा कि चीन, व्यापार से आगे भी उसके लिए काफ़ी काम आ सकता है, और विश्व व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने में सहयोगी साबित हो सकता है। चीन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।जो परमाणु कार्यक्रम, शांति स्थापना, मानवीय मदद और इस्लामिक कट्टरपंथ से लड़ने में अमेरिका का मददगार हो सकता है, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने चीन की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया।

चीन या अमेरिका कौन बनाएगा पहले कोरोना वायरस की दवा

चीन और अमेरिका इन दिनों कोरोना वायरस की दवा बनाने में जी जान से लगे हुए है,दोनों ही देश,पूरे विश्व को दिखाना चाहते हैं कि वे ही विश्व रक्षक हैं,और पूरे विश्व का नेतृत्व वे ही कर सकते है।जिसके लिए कोरोना वायरस की दवा बनाने के लिए वे दोनों पैसे को पानी की तरह बहा रहे हैं,जिससे उनके देशों में अलग अलग संस्थानों में रिसर्च चल रहा हैं ।

वे दोनों वैक्सीन बनाने में इस कदर लगे हुए हैं,मानो अगर दूसरा देश, वैक्सीन बना लेता है, तो ये उनकी पूरे विश्व में बेइज्जती होगी।

दोस्तों ये मेरा स्वयं का विचार है,आपका विचार क्या है? मुझे कॉमेंट कर के बताएं

Published by Akashdeep gupta

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