
नई शिक्षा नीति यानी न्यू एजुकेशन पॉलिसी। इसका मतलब ये है कि कब तक स्कूलों में पढ़ना है, बोर्ड की परीक्षाएं कौन सी क्लास में होंगी। ग्रेजुएशन कितने साल का होगा, इस तरह के नियम तय करने वाली नीति को बीजेपी सरकार लेकर आ रही है, जिसे न्यू एजुकेशन पॉलिसी, 2020 नाम दिया गया है।
नई शिक्षा नीति 2020 के ड्राफ्ट को 29 जुलाई को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी। दोस्तों आपको लगता होगा कि यह निति सरकार के मन मे अचानक आया होगा,जैसा कि नोटबांदी और लॉकडॉउन के समय में हुआ था,लेकीन ऐसा नहीं है। आपके जानकारी के लिए बता दू कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नई शिक्षा नीति, बीजेपी के घोषणपत्र का हिस्सा था। और सत्ता में आने के बाद भी बीजेपी ने ये एजेंडा नहीं छोड़ा और आखिर 2020 में इसे लागू करने जा रही है।
दोस्तो एक और बात है कि अभी सिर्फ नई शिक्षा नीति का ड्राफ्ट को मंजूरी मिली है, अभी लागू होना बाकी है,उसके बाद भी कई इम्तिहानों से गुजरना होगा। तो फिर सवाल ये है कि क्या ये नई शिक्षा नीति की बातें शहरों से दूर गांव-देहात के उन बच्चों तक भी पहुंच पाएंगी? क्या जिन स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं, वहां अब खेलकूद के टीचर और जहा सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होता है,तो फिर क्या वहा पर ऐसी बाकी बातें लागू हो पाएंगी?
मानव संसाधन मंत्रालय, अब शिक्षा मंत्रालय
दोस्तों आपको बता दू कि मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। अब से एचआरडी मंत्री को शिक्षा मंत्री कहा जाएगा। जब देश आजाद हुआ था, तब से लेकर 1985 तक शिक्षा मंत्री और शिक्षा मंत्रालय ही हुआ करता था, लेकिन फिर राजीव गांधी सरकार ने इसका नाम बदलकर मानव संसाधन मंत्रालय कर दिया था। इस नाम को लेकर आरएसएस से जुड़े संगठन भारतीय शिक्षण मंडल ने आपत्ति जताई थी और साल 2018 के अधिवेशन में इसका नाम बदलने की मांग की थी। अर्जी ये थी कि मानव को संसाधन नहीं मान सकते, ये भारतीय संस्कृति के खिलाफ है। इसलिए अब इसका नाम बदल दिया गया है।
शिक्षा निति में बदलाव क्यों

दोस्तो आपको लग रहा होगा कि पहले जब 10+2+3 का मॉडल चल रहा था तो फिर इसे बदलने की जरूरत क्या है, तो इसका कारण है कि बदलते वक्त की जरूरतों को पूरा करने के लिए, शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, इनोवेशन और रिसर्च को बढ़ावा देने और देश को ज्ञान का सुपर पावर बनाने के लिए नई शिक्षा नीति की जरूरत है। वर्ष 1986 में तैयार शिक्षा नीति में ,वर्ष 1992 में व्यापक संशोधन किया गया और यही नीति अभी तक प्रचलन में है। लेकिन बीते 28 सालों में दुनिया कहाँ-से-कहाँ पहुँच गई है, और हम लोग वहीं के वहीं हैं, इसी को देखते हुए देश की विशाल युवा आबादी की समकालीन ज़रूरतों और भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये यह शिक्षा नीति बनाई गई है। अब देखना है कि समय की कसौटी पर यह कितना खरा उतरती है।
नर्सरी से 12वीं तक क्या बदलाव हुआ

5+3+3+4 का फॉर्मूला
अब नर्सरी से 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई को 5+3+3+4 के फॉर्मूले के तहत चार चरणों में बाँटने की बात नई शिक्षा नीति में कही गई है। पाँच साल का पहला चरण 3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों के लिये है, इसे Foundation Stage कहा गया है। दूसरा चरण कक्षा 3 से 5 तक 8 से 11 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Preparatory Stage कहा गया है। तीसरा चरण कक्षा 6 से 8 तक 11 से 14 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Middle Stage कहा गया है। चौथा और अंतिम चरण कक्षा 9 से 12 तक 14 से 18 वर्ष के बच्चों के लिये है, इसे Secondary Stage कहा गया है।
. इस निति से अब बोर्ड की परीक्षाओं का अहमियत घटाने की बात है। अब साल में दो बार बोर्ड की परीक्षाएं कराई जा सकती हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में ऑब्जेक्टिव टाइप क्वेश्चन पेपर भी हो सकते हैं।
. इसके द्वारा स्कूलों के सिलेबस में बदलाव किया जाएगा। और नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे तथा वो पूरे देश में एक जैसे होंगे। जोर इस पर दिया जाएगा कि कम से कम पांचवीं क्लास तक बच्चों को उनकी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जा सके। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। भारतीय पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे। स्कूल में आने की उम्र से पहले भी बच्चों को क्या सिखाया जाए, ये भी पैरेंट्स को बताया जाएगा।
. नई शिक्षा नीति से अब 3 से 6 साल के बच्चों को अलग पाठ्यक्रम तय होगा, जिसमें उन्हें खेल के तरीखों से सिखाया जाएगा। इसके लिए टीचर्स की भी अलग ट्रेनिंग होगी।
. अब कक्षा एक से तीन तक के बच्चों को यानी 6 से 9 साल के बच्चों को लिखना पढ़ना आ जाए, इस पर खास ज़ोर दिया जाएगा। इसके लिए नेशनल मिशन शुरू किया जाएगा।
. नई शिक्षा नीति से कक्षा 6 से ही बच्चों को वोकेशनल कोर्स पढ़ाए जाएंगे, यानी जिसमें बच्चे कोई स्किल सीख पाए, बाकायदा बच्चों की इंटर्नशिप भी होगी, जिसमें वो किसी इलैक्ट्रीशियन के यहां हो सकती है या मेकेनिक की हो सकती है। इसके अलावा छठी क्लास से ही बच्चों की प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग होगी।तथा कोडिंग भी सिखाई जाएगी।
. अब बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में मूल्यांकन सिर्फ टीचर ही नहीं लिख पाएंगे,एक कॉलम में बच्चा खुद मूल्यांकन करेगा और एक में उसके सहपाठी मूल्यांकन करेंगे।
. अब प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक सबके लिए एकसमान पहुंच सुनिश्चित करने पर जोर दिया जाएगा। स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के इन्फ्रॉस्ट्रक्चर का विकास किया जाएगा।साथ ही नए शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 3 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाने का लक्ष्य है।
उच्छ शिक्षा में क्या बदलाव हुआ

. इसके तहत विश्व की टॉप यूनिवर्सिटीज को देश में अपने कैम्पस खोलने की अनुमति दी जाएगी।
. अब आईआईटी, आईआईएम के समकक्ष बहुविषयक शिक्षा एवं अनुसंधान विश्वविद्यालय (एमईआरयू) स्थापित किए जाएंगे।
. नई शिक्षा नीति के द्वारा मल्टी डिसिप्लिनरी एजुकेशन की व्यवस्था होगी,यानी कि कोई स्ट्रीम नहीं होगी, कोई भी मनचाहे सब्जेक्ट चुन सकता है।यानी अगर कोई कैमिस्ट्री में ग्रेजुएशन कर रहा है और उसकी चित्रकला में रुचि है, तो चित्रकला भी साथ में पढ़ सकता है.।अब आर्ट्स और साइंस वाला मामला अलग अलग नहीं रखा जाएगा। हालांकि इसमें मेजर और माइनर सब्जेक्ट की व्यवस्था होगी।
. नई शिक्षा नीति से कॉलेजों की ग्रेडेड ऑटोनॉमी होगी। अभी एक यूनिवर्सिटी से एफिलिएटेड कई कॉलेज होते हैं, जिनकी परीक्षाएं यूनिवर्सिटी कराती हैं,अब कॉलेज को भी स्वायत्ता दी जा सकेगी।
. नई शिक्षा नीति के जरिए, उच्च शिक्षा के लिए सिंगल रेग्युलेटर बनाया जाएगा, जैसे अभी यूजीसी, एआईसीटीई जैसी कई संस्थाएं हायर एजुकेशन के लिए हैं, अब सबको मिलाकर एक ही रेग्युलेटर बना दिया जाएगा। मेडिकल और लॉ की पढ़ाई के अलावा सभी प्रकार की उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेग्युलेटर बॉडी भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा।
. नई शिक्षा नीति से रिसर्च प्रोजेक्ट्स की फंडिंग के लिए अमेरिका की तर्ज पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जाएगा, जो साइंस के अलावा आर्ट्स के विषयों में भी रिसर्च प्रोजेक्ट्स को फंड करेगा।
