सुरुवाती दौर:

हेल्लो दोस्तों,आज मै आपको जिस जीनियस के बारे में बताने जा रहा हूं,उनका नाम है अल्बर्ट आइंस्टीन,
अल्बर्ट आइंस्टीन को 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है।
तो चलिए शुरू से शुरुवात करते हैं।
अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 में जर्मनी में वुतटेमबर्ग के यहूदी परिवार में हुआ था।
Albert Einstein परिवार यहूदी धार्मिक परम्पराओ को नहीं मानता था और इसीलिए आइंस्टीन कैथोलिक विद्यालय में पढने के लिए गये। लेकिन बाद में 8 साल की उम्र में वे वहा से स्थानांतरित होकर लुइटपोल्ड जिम्नेजियम (जिसे आज अल्बर्ट आइंस्टीन जिम्नेजियम के नाम से जाना जाता है) गये, जहा उन्होंने माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की, वे वहा अगले 7 सालो तक रहे, जब तक उन्होंने जर्मनी नहीं छोड़ी।
दोस्तों 1895 में आइंस्टीन ने 16 साल की उम्र में स्विस फ़ेडरल पॉलिटेक्निक, जुरिच की एंट्रेंस परीक्षा दी, जो बाद में Edigenossische Technische Hochschule (ETH) के नाम से जानी जाती थी। वे भौतिकी और गणित के विषय को छोड़कर बाकी दुसरे विषयो में वे पर्याप्त मार्क्स पाने में असफल हुए। और अंत में पॉलिटेक्निक के प्रधानाध्यापक की सलाह पर वे आर्गोवियन कैनटोनल स्कूल, आरु, स्विट्ज़रलैंड गये। 1895-96 में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा उन्होंने वही से पूरी की और अंत में

स्नातक की डिग्री लेने के बाद सन 1902 में अल्बर्ट आइन्स्टाइन को स्विज़रलैंड के बर्न शहर में एक अस्थाई नौकरी मिल गयी | अब उन्हें अपने शोध लेखो को लिखने और प्रकाशित कराने का बहुत समय मिला | और उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के लिए मेहनत करना शुरू कर दिया और अंत में उन्हें डाक्टरेट की उपाधि भी मिल ही गयी।
अल्बर्ट आइंस्टीन के लिए 1905 एक साथ कई उपलब्धियों का वर्ष:

अल्बर्ट आइंस्टीन को 20वीं सदी का ही नहीं, बल्कि अब तक के सारे इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक माना जाता है. 1905 एक साथ उनकी कई उपलब्धियों का स्वर्णिम वर्ष था. उसी वर्ष उन्होंने सर्वप्रसिद्ध सूत्र E= mc² की खोज किया था ‘सैद्धांतिक भौतिकी, विशेषकर प्रकाश के वैद्युतिक (इलेक्ट्रिकल) प्रभाव के नियमों’ संबंधी उनकी खोज के लिए उन्हें 1921 का नोबेल पुरस्कार भी मिला था
आविष्कार:
दोस्तों अल्बर्ट आइंस्टीन ने बहुत से अविष्कार किये जिसके लिए उनका नाम प्रसिद्ध वैज्ञानिको में गिना जाने लगा. उनके कुछ अविष्कार इस प्रकार है –
सापेक्षता सिद्धांत:
अल्बर्ट आइंस्टीन के नाम को जिस चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता सिद्धांत (थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी). उन्होंने गति के स्वरूप का अध्ययन किया और कहा कि गति एक सापेक्ष अवस्था है. आइंस्टीन के मुताबिक ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं है, जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की ‘निरपेक्ष गति’ या किसी प्रणाली का निश्चय कर सके. गति का अनुमान हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बना कर उसकी अपेक्षा स्थिति-परिवर्तन की मात्रा के आधार पर ही लगाया जा सकता है. 1907 में प्रतिपादित उनके इस सिद्धांत को ‘सापेक्षता का विशिष्ट सिद्धांत’ कहा जाने लगा.
प्रकाश की क्वांटम थ्योरी:

दोस्तों आइंस्टीन की प्रकाश की क्वांटम थ्योरी में उन्होंने ऊर्जा की छोटी थैली की रचना की जिसे फोटोन कहा जाता है, जिनमें तरंग जैसी विशेषता होती है. उनकी इस थ्योरी में उन्होंने कुछ धातुओं से इलेक्ट्रॉन्स के उत्सर्जन को समझाया. उन्होंने फोटो इलेक्ट्रिक इफ़ेक्ट की रचना की। E= MC square – आइंस्टीन ने द्रव्यमान और ऊर्जा के बीच एक समीकरण प्रमाणित किया, उसको आज nuclear energy कहते है।
Brownian motion:
दोस्तों सायद आपको पता नहीं होगा लेकिन यह अल्बर्ट आइंस्टीन की सबसे बड़ी और सबसे अच्छी ख़ोज कहा जा सकता है, जहाँ उन्होंने परमाणु के निलंबन में जिगज़ैग मूवमेंट का अवलोकन किया, जोकि अणु और परमाणुओं के अस्तित्व के प्रमाण में सहायक है।
महात्मा गांधी के बड़े प्रशंसक
दोस्तों क्या आपको पता है? अल्बर्ट आइंस्टीन महात्मा गांधी जी के बहुत बड़े प्रशंसक थे।
सत्येन्द्रनाथ बोस जी के साथ काम:
दोस्तों सायद आप यह बात नहीं जानते होंगे कि उन्होने भारत के भौतिकशास्त्री सत्येन्द्रनाथ बोस के सहयोग से ‘बोस-आइंस्टीन कन्डेन्सेशन’ नाम की पदार्थ की एक ऐसी अवस्था होने की भी भविष्यवाणी की थी, जो परमशून्य (– 273.15 डिग्री सेल्सियस) तापमान के निकट देखी जा सकती है। यह भविष्यवाणी, जो मूलतः सत्येन्द्रनाथ बोस के दिमाग़ की उपज थी, और उन्होंने उसके बारे में अपना एक पत्र आइंस्टीन को भेजा था, जो कि 1955 में पहली बार एक प्रयोगशाला में सही सिद्ध की जा सकी।
अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम पत्र
दोस्तों दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ ही दिन पहले, अगस्त 1939 में, आइंस्टीन ने अमेरिका में रह रहे हंगेरियाई परमाणु वैज्ञानिक लेओ ज़िलार्द के कहने में आ कर एक पत्र पर दस्तखत कर दिए. यह पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट के नाम लिखा गया था. इसमें रूज़वेल्ट से कहा गया था कि नाज़ी जर्मनी एक बहुत ही विनाशकारी ‘नये प्रकार का बम’ बना रहा है या संभवतः बना चुका है. अमेरिकी गुप्तचर सूचनाएं भी कुछ इसी प्रकार की थीं, इसलिए अमेरिकी परमाणु बम बनाने की ‘मैनहटन परियोजना’ को हरी झंडी दिखा दी गयी।
लेकिन दोस्तों दुख इस बात का है कि जिस विश्व युद्ध के लिए यह बम बनाया गया था उसके खत्म हो जाने के बाद अमेरिका ने पहले दोनों बम 6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर गिरा दिए जो कि बहुत ही गलत था।
आइंस्टीन को इससे काफ़ी आघात पहुंचा. अपने एक पुराने मित्र लाइनस पॉलिंग को 16 नवंबर 1954 को लिखे अपने एक पत्र में खेद प्रकट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘मैं अपने जीवन में तब एक बड़ी ग़लती कर बैठा, जब मैंने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को परमाणु बम बनाने की सलाह देने वाले पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिये, हालांकि इसके पीछे यह औचित्य भी था। क्योंकि जर्मन लोग एक न एक दिन उसे जरूर बनाने कि कोशिश करते।